मैं करीब दो साल पहले ‘नेशनल डेयरी डेवलपमेन्ट बोर्ड’ आणंद, गुजरात गया था। अमूल के प्लांट का भी गहराई से अध्ययन किया और गोधरा, खेडा, अहमदाबाद आदि जगहों पर गांव में जा कर भी दूध कोआपरेटिव के काम करने के तरीके को देखा। मैं यह उत्तर अपने अनुभव के आधार पर लिख रहा हूँ और समझता हूँ कि सबके काम आएगा।
भारत में हम दूध तीन तरीके से पीते हैं। कुछ लोग कच्चा दूध पीते हैं मतलब बिना उबाले सीधे गाय से दूध निकालने के बाद। इसमें दूध को गर्म नहीं करने के कारण पौष्टिक तत्व तो जरूर नष्ट होने से बच जाते हैं परंतु यह सुरक्षित नहीं है। बीमारी फ़ैलाने वाले कीटाणु इसमें हो सकते हैं और यह सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है।
दूसरा जो सामान्य तरीका है वह है दूध को उबाल कर पीना। अधिकाँश भारतीय घरों में यही तरीका इस्तेमाल होता है। पाश्चुरीकृत दूध को भी हम उबाल कर ही पीते हैं।
अब आते हैं पाश्चुरीकृत दूध पर। बाजार में पैकेट में मिलने वाले दूध इस श्रेणी में आते हैं। इसमें दूध की ख़ास तापमान पर ख़ास समय के लिए गर्म कर तुरंत ठंढा कर दिया जाता है। दूध को जिस तापमान पर गर्म किया जाता है वह घर में उबलने वाले तापमान से कम ही होता है। ऐसा माना जाता है कि कम तापमान पर गर्म करने से दूध के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते और बीमारी फ़ैलाने वाले कीटाणु भी मर जाते हैं। ऐसे दूध घर में बिना उबाले इस्तेमाल करने के प्रयोजन से बनाये जाते हैं। सीधे ग्लास में दूध डालिये और पी लीजिये। गर्म दूध पीना पसंद हो तो थोड़ा गर्म कर लीजिए।
अब सवाल यह उठता है कि यह कितना सुरक्षित है। मुझे एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि भारत में पाश्चुरीकृत दूध भी बिना उबाले पीना कतई सुरक्षित नहीं है। उन्होंने जो मुझे आणंद में बताया उसे साझा कर रहा हूँ।
दूध में जीवाणुओं की संख्या कम होगी या ज्यादा इसका निर्धारण जहाँ गाय रखी जाती है और दूध दुहा जाता है वहीँ से शुरू हो जाता है। जितने भी सहकारी संस्था हैं जिसमे अमूल भी शामिल है वो हज़ारों किसानों से प्रतिदिन सुबह और शाम दूध इकठ्ठा करती हैं। किसान जो दूध दे रहे हैं वह कितना हाइजीनिक माहौल से आ रहा है इसका आकलन मुश्किल है। वह दूहने के पहले गाय के थन को और दूहने के बरतन को कैसे साफ़ करते हैं कहना कठिन है। एक बार दूध जब अमूल के प्लांट में आ जाता है तो अंतिम उत्पाद बनने के समय तक किसी को उसमे हाथ लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती , सभी काम मशीनों के माध्यम से होते हैं। परंतु प्लांट में आने से पूर्व ही दूध जो हज़ारों किसानों से गांव में इकठ्ठा किया जाता है, काफी दूषित हो चूका होता है। जिस दूध में जीवाणु का भार (माइक्रोबियल लोड) अत्यधिक है उसपर पाश्चुरीकरन प्रभावी नहीं। ऐसे में दूध को अच्छी तरह उबाल लेना ही उचित हैं। उन्होंने बताया कि वहां के भी पाश्चुरीकृत दूध में बीमारी फैलने वाले जीवाणु हो सकते हैं।
मैंने गुजरात के गांवों में महसूस किया कि किसानों में इस विषय में काफी जागरूकता है और ना सिर्फ गाय बल्कि बरतनों को भी काफी साफ़ रखते हैं फिर भी वहां का पाश्चुरीकृत दूध भी सुरक्षित नहीं। अन्य राज्यों के सहकारी पाश्चुरीकृत दूध की स्थिति और खराब हो सकती है।
निष्कर्ष :-कच्चा दूध तो कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए और पाश्चुरीकृत दूध भी भारत जैसे गर्म तापमान वाले देश में उबाल कर ही पीना उचित है। उबालने से दूध के पोषक तत्व कुछ नष्ट हो सकते हैं पर जीवाणु वाले दूध को पीने से यह बेहतर है। उबला दूध भी काफी पोषक है और बीमार होने के खतरे को काफी हद तक कम कर देता है।
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