किसी मनुष्य के हाथों का वृद्ध अवस्था से पहले कंपकंपाने और शरीर के अनावश्यक रूप से हिलने से पता चल जाता है कि वह मानसिक अवसाद /एक मनोरोग (अन्तर्मन में चढ़े घातक/मारक डर ) का शिकार का शिकार हो चुका है उसके अंतर्मन में ऐसी असाध्य समस्या चढ़ चुकी है जिसका उसे दूर दूर तक अपनों से दूसरे लोगों से समाधान /हल नहीं सूझ रहा है उसे समस्या का हल मौत ठीक दिखाई दे रहा है । । इसमें मेरा अनुभव सहमति शामिल है । इसका मनोवैज्ञानिक कारण है पलायन वादी सोच और अकेला पन से उत्पन्न गुमसुम चुपचाप रहते हुए सामाजिक जीवन क्रिया कलाप में रुचि न लेना /रखना सामाजिक पर्व विवाह शादी नामकरण परिजनों के शोक समय पर उचित प्रतिक्रिया नहीं दे सकना ,चेहरे पर से हंसी मुस्कान दुख के भाव गायब बस अपने मन में रमे रहते हुए एकांकी स्वभाव बन जाता है । जिसका कारण है ऐसे मनुष्य के मन में न सुलझने योग्य भयंकर समस्या का डर बैठ जाता है ऐसी विकट समस्याओं के कारण से परिवारिक , सामाजिक , व्यावसायिक , और अन्य किसी समस्याओं के कारण जीवन जीने में - मरण तुल्य अपमान के कारण अवचेतन मन में घुसा मानसिक डर , जिसमें मनुष्य का मानसिक संतुलन खराब होने पर वह मानसिक अवसाद जैसे मानसिक रोग की चपेट में आ जाता है । इसका पता मुझे २०१३में तब चला जब मैं अपनी निजी परिवारिक समस्याओं से परेशान था तब मैं अपनी बुआ के बेटे पवन शर्मा के पास गाजियाबाद गया था ।वह भी अपने नशे की आदत का इलाज कराने के लिए नशा निवारण केंद्र में लम्बे समय तक भर्ती रहा था ।
मेरे कंपकंपाते हाथों को देखकर उदासी की मुखमुद्रा अति चंचल पलायनवादी चाल हिलता शरीर देखकर उसने पहचान लिया था और कहा कि गुरु तुम डिप्रेशन में आ गए हो। अपने डिप्रेशन का इलाज कराओ नहीं तो तुम टें बोल जाओगे , हर्ट अटैक हो सकता है ,या फिर खुद खुशी /आत्महत्या कर लोगे , बात उसकी सच थी हर समय मन में मरने के विचार आने लगे थे , लगता था कि अभी हर्ट अटैक का दोरा पड़ेगा और तू मरेगा ,मन में बेचैनी इस कदर बढ़ गई थी कि मैं ठीक से रुककर खड़ा भी नहीं हो पाता था ।बस अब चल यहां से भाग चल सुरक्षित जगह पहुंच जहां पर अस्पताल निकट हो ।बस भागम् भाग सूझता था , मैं महापलायन वादी अति चंचल हो गया था ।मन में हर समय मरे लोगों के विचार आने लगे थे वह मर गया —-वह मर गया अब तेरी बारी है ।मेरा अवचेतन मन मुझे मरने के लिए तैयार करने लगा था ।
मैंने ध्यान से उसकी बात को सुना सोचा समझा वह सही कह रहा था । मैं उस समय भयंकर परिवारिक समस्याओं में उलझा हुआ था । बच्चे सही परिवारिक सामाजिक शिक्षा के अभाव में विद्रोही हो गये थे वे सैंड सोंग्स सुनते थे मेरे मना करने पर भी बाज नहीं आते थे । लव-मैरिज इंटरकास्ट मैरिज की वकालत करते थे । मैं ब्राह्मण परिवार से हूं और बच्चे लड़कियों की रूचि मुस्लिम पठान और ठाकुर परिवारों की ओर बढ़ रही थी । मेरे ब्राह्मण परिवार जाति संस्कार के भेद विरोधी संस्कारों के टकराव के कारण मैं मैंटल डिप्रेशन / मानसिक तनाव में आ गया था । मुझे मानसिक अवसाद हो चुका था ।होनी होकर रुकी । मैंने मन का मस्तिष्क का व्यवहार का व्यापक अध्ययन किया ,प्रौपर काउंसिलिंग कराई ।तब इसके बाद में अपनी मानसिक अवसाद की मानसिक बिमारी से आंशिक रूप में मुक्त अनुभव करता हूं ।
मेरी समस्या सामाजिक परिवारिक जातिवाद से प्रभावित होने पर मुझे मानसिक अवसाद का शिकार होना पड़ा , लेकिन इससे मुझे मानसिक अवसाद जैसे मानसिक रोग का पता चल गया । अब भी मैं अपनी उस मानसिक पीड़ा जनित न्यूरालजैनिक पेन :: को भूला नहीं हूं जिसमें समस्याओं की उग्रता के कारण अचानक ध्यान मुखक्षेत्र में कैनाइन दांत से शुरू होकर जबड़े की डेंटरी तंत्रिकाओं के क्षेत्र में से होता हुआ कान के बराबर से होता हुआ दिमाग के पिछले हिस्से में से होता हुआ खोपड़ी की हड्डियों को चटकाता हुआ दिमाग के अंदर घुस कर दिमाग को झनझनाहट के साथ हिला दिया करता था । मेरा सिर पीड़ा न सहन कर पाने से सुन्न हो जाया करता था । मैं अर्ध बेहोशी की हालत में चला जाता था । लक्षणों को पूरी तरह से भूला नहीं हूं अब भी यदा-कदा कभी कभी भयंकर परिवारिक , सामाजिक , व्यावसायिक , नौकरी से सम्बंधित समस्या उत्पन्न हो ने पर बास के द्वारा अकारण डराये जाने पर ड्रामा बाजी करने घुड़काये जाने पर , आर्थिक , समस्या उत्पन्न हो ने पर वे मानसिक अवसाद मनोरोग के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं । लेकिन अब मरने का विचार नहीं आता है ,अब मारने बदला लेने का विचार आता है । यह मेरी मानसिक स्थिति में सुधार हुआ है ।
बरहाल मेरे विचार से मानसिक अवसाद का कारण ऐसी विकट समस्या उत्पन्न होना है जिसका निराकरण /समाधान आपने वश में नहीं होता है ।इस तरह की दुष्ट नकारात्मक समस्याएं अति बलवान शत्रु से वैर , अपने प्राण प्रिय निजी परिवारिक जन , सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लगने से , व्यावसायिक असीमित हानि , नौकरी जाने का भय , व्यापार में भयंकर आर्थिक हानि जिससे जीवन अन्तिम सीमा रेखा पर आ जाये , दुष्ट क्रूर कर्मा /डान लोगों के कारण अचानक पैदा हो जाती हैं ।
हम सभी लोग अपनी निजी आदतों के अनुसार जीते हैं और आदतें हमारे अवचेतन मन में भरी गई पूर्व सूचनाओं के अनुसार बनती हैं हम आदतों के अनुसार व्यवहार करते हैं व्यवहार शरीर चेष्टा एवं दूसरों को दिखाई देती हैं । उपरोक्त प्रकरण में मेरे कंपकंपाते हाथों हिलते हुए शरीर से मेरे अवचेतन मन में भरी सूचनाओं के अनुसार भविष्य में आने वाली मुशीबतों :-अंतर्जातीय विवाह के बाद मैं अपना जीवन यापन कैसे कर पाऊंगा ?, मेरी अन्य बेटियों की शादी मेरी जाति में कैसे हो पायेगी ?, समाज में मेरी इज्जत/ प्रतिष्ठा का क्या होगा ? क्या मेरी अन्य बेटियों को भी मजबूरी वश अन्य निम्न जातियों में शादी करनी पड़ेगी ????? ऐसी अनेकों आशंकाओं के कारण अचानक उत्पन्न डर के प्रभाव के कारण मेरा व्यवहार खराब हो गया था जिसे अपने पूर्व ज्ञान संज्ञान के आधार पर एल्कोहल्जिम लक्षण पैदा हो गये थे जिनके अनुसार मेरी अनुचित शरीर चेष्टा और खराब व्यवहार को मेरी बुआ के बेटे पवन शर्मा ने समझ लिया था और मुझे आगाह /सचेष्ट किया था । उस समय मेरी आयु पचास वर्ष की थी और शरीर चेष्टा के लक्षण अस्सी साल के बनने /दिखने लगे थे ।इस सब का मूल कारण था मेरे अंतर्मन के अवचेतन स्तर में जीवन प्रतिष्ठा नष्ट हो पर जीवन जीने के लिए डर ,कि अब जीवन कैसे जिया जायेगा? लोकनिंदा जगहंसाई के साथ समाज में कैसे जिया जायेगा । इस जिल्लत जलालत झेलनी जिंदगी से कैसे जिया जायेगा ?
इसी प्रकार से सभी मानसिक रोगों में मनुष्य का सामान्य व्यवहार खराब होकर असामान्य परिस्थितियों के कारण बदल जाता है ।जिन लोगों का मन निर्बल होता है उनके अंतर्मन के अवचेतन स्तर में डर चढ़ जाने पर उनकी मानसिक स्थिति जाम /रुककर अवसादअवस्था में आ जाती है दिमाग शरीर का सहसंबंध समन्वय , सह-संयोजन बिगड़ जाता है जिससे शरीर की चेष्टाएं मुद्राएं खराब हो जाती हैं । जिसे हम अपने पूर्व ज्ञान संज्ञान अनुभव के आधार पर पहचान कर मनोरोगी को उचित सलाह देकर उसके जीवन कौ सामान्य बना सकते हैं। अतःजरूरी है मनोरोगों के बारे में सामान्य ज्ञान होना , जिसके अध्ययन की आवश्यकता है ।
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